Description
ABOUT THE BOOK
इन दिनों समकालीन हिन्दी का कथा संसार बिल्कुल भिन्न और अपरिचित स्वरों से गुलजार हो रहा है। यह हिन्दी भाषा और हिन्दी के कथा जगत के लिए शुभ है। इसमें खास यह भी है कि इन नये स्वरों में एक बहुत बड़ा हिस्सा उनका है, जिनका अध्ययन, प्रशिक्षण हिन्दी से भिन्न अनुशासनों में हुआ है या हो रहा है। इस कड़ी में एक ताजा नाम रूपेश उपाध्याय का जुड़ रहा है। रूपेश ‘अपराधशास्त्र’ विषय में शोधकार्य कर रहे हैं। अपने अध्ययन क्षेत्र से गहरी संलग्नता के साथ ही उनका सरोकारी मन साहित्य की दुनिया में विचरते हुए सुख पाता है। उनके इसी सुख और सरोकार की स्वभाविक परिणति है, ‘साँझ का सूरज’। व्यवस्था, सत्ता संरचना और सामाजिक असंवेदनशीलता के बीच एक अति सामान्य मनुष्य के जीवन और मृत्यु के उधेड़बुन से निर्मित यह कथा संरचना पाठक को आस्वाद की एक भिन्न दुनिया से रूबरू कराती है। विषय, विचार, भाषा और कहन में एक टटकापन है। ‘साँझ का सूरज’ लेखक की पहली रचना है इसके बावजूद कथा का गठन और किस्सागोई हमें चकित करती है।
ABOUT THE AUTHOR
महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली सिद्धार्थ नगर (उ.प्र.) के एक गाँव परसिया में जन्मे रूपेश उपाध्याय अपने पिता के अंग्रेजी प्रशिक्षण के बावजूद हिन्दी साहित्य और भाषा के प्रति गहरा लगाव रखते हैं। इनका अकादमिक प्रशिक्षण ‘उसका बाजार’ से होते हुये शिवपति स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शोहरतगढ़ से हुआ है। स्वभाव से सरल, शांत और हँसमुख रूपेश के भीतर अपनी दुनिया और समाज के मनुष्य विरोधी प्रवृत्तियों के विरुद्ध एक बेचैनी रहती है। उसी बेचैनी को अपनी भाषा में दर्ज करने की कोशिश इन्हें सम्भावनाशील लेखक बनाती है। फिलहाल रूपेश डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) में अपराधशास्त्र विषय में पी. एच. डी. शोधकार्य कर रहे हैं।
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