Description
About the book
एक टुकड़ा धूप को आँगन में सजा रखा है,
अपने मन को मैंने इक मंदिर बना रखा है,
चेहरे पे फैली हो जेठ की दुपहरी तो क्या है,
पलकों पे अपनी मैंने सावन को सजा रखा है।
₹250.00
By: Giridhari Dodrajka
ISBN: 9789354465864
PRICE: 250
Category: POETRY / General
Delivery Time: 7-9 Days
About the book
एक टुकड़ा धूप को आँगन में सजा रखा है,
अपने मन को मैंने इक मंदिर बना रखा है,
चेहरे पे फैली हो जेठ की दुपहरी तो क्या है,
पलकों पे अपनी मैंने सावन को सजा रखा है।
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