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Agni Sahcharya (Khand Kavya)

235.00

by: Dr. Jay Vairagi

ISBN: 9789354462801

PRICE: 235

Pages: 98

Language: HINDI

Category: POETRY / General

Delivery Time: 7-9 Days

Description

About the book

लिखने का अपना एक आनन्द है ! कब कौन सी कल्पना कौन सा विचार आपको क्या लिखने को बाध्य कर दे यह पूर्व से कहना सम्भव नही है ।
श्री राम सीता का जीवन बहुत ही कष्ट मय है । बहुत समय से एक बात चुभ रही थी कि लंका के तट पर अग्नि स्नान का आदेश दे कर क्या आराध्य श्री राम ने नारी अस्मिता को वास्तव में विखंडित किया था क्या वास्तव में यह सम्भव है कि मानवीय संवेदना को इस लौकिक देह में अग्नि से सुरक्षित निकाल कर उसकी पुनर्स्थापना की जा सकी !! प्रश्न अकाट्य है किंतु उत्तर अभी तक भी उस स्वरूप में प्राप्त तो नही हुआ न जिस रीति से यह आलेखित है । यदि वास्तव में अग्नि की प्रज्जवलना ही की गई थी तो अग्नि के किसी साहचर्य में मानवीय देह का बचना तो दुष्कर ही नही असम्भव भी है न ।
फिर इसी सत्य को अनावृत किये जाने की एक प्रबल इच्छा मन में जाग्रत हुई ।
कथानक भी सूक्ष्म है घटना क्रम भी सूक्ष्म ही माना जाना चाहिए ! कथानक का जन्म त्वरित तो होता नही है। जब ऐतिहासिक रूप से किसी लेखन का पुनर्स्थापन होता है न तब इन सूक्ष्म बिंदुओं पर ध्यान जाना एक सहज प्रक्रिया का अंश ही माना जाना चाहिए।

महाभारत कालीन द्रोपदी अग्निजा थी तो देवी सीता भूमिजा !! भूमिजा होने मात्र से भूमि का अग्नि से सम्पर्क होना स्वाभाविक है । फिर सतीत्व के आगे सम्भव ही नही कि कोई अगन किसी लौकिक देह को छू भी सके !!
श्री राम इस तथ्य से भिज्ञ थे यह तो रचित है पर यह अगन स्थूल न होकर सूक्ष्म रही होगी या प्रतीकात्मक जो संभवतः भविष्य के प्रति वैदेही को सचेत किये जाने का श्री राम की ओर से एक उपक्रम सन्देश ही माना जाना चाहिए !
यह अगन भविष्य में अदृश्य रूप में ही प्राकट्य सही किन्तु इसने अवध के राज्यकुल को भभूत बना कर ही छोड़ा! न वैदेही! न राम ! न अवध ! न प्रजा ! एक बार जलने के बाद इस अग्नि ने किसी को नही छोड़ा ! अग्नि का यह स्वभाव भी नही कि वह किसी को छोड़ देवे ।

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