Description
About the book
यह पुस्तक सार है सत् चित् और आनन्द का। इस पुस्तक के पृष्ठों में सत्य की प्रधानता, चित्त की निर्मलता और आनन्द की बहुलता है। इस पुस्तक के लेखों के माध्यम से पाठक जीव और ब्रह्म के सम्बन्धों पर गहराई से चिंतन और मनन कर पाने में सक्षम हो सकेंगे। यह पुस्तक आत्मा, परमात्मा और जीवात्मा के चिर सम्बन्धों को न केवल रेखांकित करती है बल्कि अपने लेखों के माध्यम से मनुष्य को रूपांतरित करने का प्रयास भी करती है।
मनुष्य में छिपे समस्त विकारों को जड़ मूल सहित किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है और किस प्रकार मानव आत्मोन्नति कर मोक्ष के पथ पर अग्रसर हो सकता है यही इस पुस्तक का सार तत्व है।
गीता, उपनिषद, चरक संहिता, विवेक चूड़ामणि जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण और तार्किक निचोड़ इन लेखों में यथायोग्य समाहित है। साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित सूत्रों का विवेचन भी लेखों के द्वारा किया गया है। वस्तुतः यह पुस्तक बीज रूप में ब्रह्म और जीव के गूढ़ रहस्यों को अपनी पूरी मौलिकता के साथ उजागर करने का एक सश्रम प्रयास है।
About the author
लेखक का जन्म 20 मार्च 1949 ई० ग्राम तेन्दुई, जनपद वाराणसी में हुआ। विद्यालयी शिक्षा ग्रामीण अंचल से पूर्ण होते हुए इन्होंने एम.ए (भूगोल) काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बी एच यू) वाराणसी से पूर्ण किया। एल.एल.बी की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से प्राप्त की। सर्वप्रथम आरम्भिक सेवा महाविद्यालय में प्रवक्ता पद से प्रारम्भ हुई। किंतु बाद में उसे छोड़कर इन्होंने बैंकिंग प्रोफेशनल के पद का निर्वाह किया। तदुपरांत सेवानिवृत्त होकर अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ की किंतु कुछ वर्षों पश्चात कैंसर रोग से ग्रसित होने के कारण इस कार्य से मन हट गया। यहीं से इनमें चिंतन की दूसरी धारा का आरम्भ हुआ। वैदिक दर्शन, धर्म, साहित्य एवं सनातन संस्कृति के प्रति इनकी तीव्र जिज्ञासा जागृत हुई। इनका गहराई से अध्ययन करने के लिए इन्होंने देश विदेश का भ्रमण भी किया तथा साथ ही साधु-संतों का उत्तम सानिध्य भी प्राप्त किया। इन सभी का सुखद परिणाम यह हुआ कि इनका जीवन तेजी से रूपांतरित हुआ। वर्तमान में अध्ययन, चिंतन, ध्यान और लेखन ही इनकी दिनचर्या का अंग बना हुआ है।
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