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WHICH ISN’T A BOOK, BUT A BOOK – A “NO-THING”

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World War

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by Aalok Kumar

ISBN: 9789389774856

PRICE: 150/-

Pages: 118

Category: Fiction / Science Fiction

Delivery Time: 7-9 Days

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Description

मुझे नहीं समझ आ रहा कि मैं खुद के बारे में क्या बताऊँ। खुद को एक वर्ल्ड साइंटिस्ट कहूँ या इंडिया का प्राइम मिनिस्टर कहूँ। एक ही जन्म में मेरे पास दो ज़िंदगियाँ थी वो भी अलग-अलग चरित्र के साथ।

मेरा नाम ‘आलोक कुमार’ है। मेरे जन्म से ही मेरी ज़िंदगी का मकसद, एक सपनें के रूप में मेरे अन्दर ही अन्दर मेरे मन को झिंझोड़े जा रहा था। ‘एक दुनिया जो कि पूरी तरह से आग के लपेटे में आ चुकी थी, उस आग से निकलती धरती के धुओं और आसमान के उड़ते हुए बादलों में कोई फर्क समझ ही नहीं आ रहा था’। ये मेरे लिए सिर्फ एक सपना था, पर एक न एक दिन सच भी होने वाला था।

मेरी ज़िंदगी के एक हिस्से ने लोगों की ‘भविष्य देखने वाला, लोगों की ईमानदारी और बेईमानी मापने वाला, लोगों के अन्दर सकारात्मक और नकारात्मक उर्जाओं का प्रतिशत देखने वाला एक ‘रोबोट’ तैयार, ‘क्वांटम स्पीड रीडिंग’ जैसी तकनीक को आम स्कूलों में आम बनाने का सपना देखा’। फ़िलहाल तो मेरी एक ज़िंदगी ने बहुत कुछ किया, बहुत कुछ देखा तो वहीं दूसरी तरफ मेरी ज़िंदगी ने ..

इंडिया में राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के लिस्ट में अपने छाती पर गोली खाकर अपना नाम जोड़ देखा। शायद ये बात सच है कि होनी को कभी टाला नहीं जा सकता। रातों-रात इंडिया का डेमोक्रेटिक सिस्टम पलटा तो सही पर इस सच के साथ की देश में गृह युद्ध छिड़ चूका था। ‘गृह युद्ध’ शब्द इंडिया के लिए कुछ नया तो नहीं था पर ये ‘गृह युद्ध’ अलग था जो खुद को जितने के चक्कर में इंडिया के नए राजनीती को हराने के चक्कर में देखते ही देखते कब विश्व युद्ध में बदल गया पता ही नहीं चला। तब मुझे समझ आया कि होनी को टाला नहीं जा सकता। मैंने ऊपर लिखा है मेरे सपने के बारे में, मेरी मंजिल के बारे में। कहानी में ट्विस्ट तो बहुत सारा है पर जिस ट्विस्ट की उम्मीद नहीं थी वो अचानक ही बिन घर बुलाए मेहमान की तरह मेरी ज़िंदगी में दस्तक दे जाता है और वो है ‘रोबोट’ के मॉलिक्यूलर माइंड का पूरी तरह से एक्टिवेट न होना। मेरी माँ कहा करती थी कि इस दुनिया में दो शक्तियां हैं पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक और ये दोनों इन्सान के अन्दर भी होते हैं। वो कहा करती थी कि इस दुनिया को कोई बचा सकता है तो है सकारात्मक शक्तियां। मैंने एक ‘रोबोट’ तैयार किया जो इस ‘एटम वर्ल्ड’ से या ‘मॉलिक्यूलर वर्ल्ड’ से जितनी मात्रा में चाहे सकारात्मक शक्तियों को खीच सकता है। लड़ाई छिड़ चुकी थी। चारों तरफ आग ही आग, धुआं ही धुआं दिखाई देने लगा था और ऐसे में ‘रोबोट’ को प्रयोग करने समय आया तो वो खुद को निष्क्रिय बताने लगा …….मिलते हैं कहानी के अन्दर।

About The Author

आलोक कुमार, का जन्म बिहार के सासाराम शहर में हुआ, पर उनका घर सासाराम से तकरीबन १४, १५ किलोमीटर दूर डुमरिया नाम के एक छोटे से कस्बे में है, लेकिन उनके जन्म से ही उनका परिवार सासाराम और डुमरिया के बीच एक छोटा सा बाज़ार ”अमरा तालाब” पर बसे हुए थे, इसीलिए उनकी प्राथमिक शिक्षा वहीं के प्राइवेट और फिर सरकारी स्कूल से हुई, और फिर उन्होंने अपने दसवीं और बारहवीं की पढाई अपने नजदीकी शहर सासाराम से पूरा किया, उन्होंने B.A की डिग्री के लिए अपने राजधानी ”पटना” के ”नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी” में नामांकन कराया, पर वो B.A का पहला सत्र भी नहीं पूरा कर पाए । दरअसल, उन्होंने जब से होश संभाला उनको अभिनय का करने बहुत शौक था, और धीरे–धीरे उनका वो शौक बढ़ता गया, और फिर वो अपने भविष्य की कल्पना एक पेशेवर अभिनेता के तौर पर करने लगे, उस कल्पना में वो इस बात की भी कल्पना करते थे कि मैं जब अभिनय करूँगा तो अभिनय कैसे करूँगा, कहानी कैसी होगी, और फिर उनके दिमाग में अभिनय के साथ–साथ कहानियों का भी ख्याल आने लगा और फिर उस कल्पना ने उनको लिखने पर मजबूर कर दिया। एक सख्त परिवार और समाज में जन्म होने के कारण वो किसी को कुछ बताते नहीं थे, बहुत गुमसुम रहा करते थे, और उनको जब भी मौका मिलता था, वो खुद से ही बात किया करते थे, जब वो दसवीं का परीक्षा देकर उसके परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे तो उसी बीच उनको एक आदमी से मुलाकात हुई जो भोजपुरी भाषा में गीत–संगीत बनाता था, और वो आदमी उनको वाराणसी जाने को कहा और एक आदमी से मिलने को कहा। वो घर से झूट बोलकर वाराणसी गए चूँकि घर से पहली बार इतना दूर जा रहे थे तो अपने साथ एक मित्र को ले लिए उस वक़्त वही उनका करीबी मित्र था, और पैसे के आभाव में उनको उस दिन भूखे रहना पड़ा और साथ में उनके दोस्त को भी, उनके ज़िंदगी का वो पहला परीक्षा था उनके ज़िंदगी के तरफ से और उसमे कामयाब हुए। उसके बाद शुरू हुई उनकी यात्रा, वो अपनी कहानी खुद लिखने लगे और निर्देशक, निर्माता से मिलने लगे, पर वो लगातार असफल होते चले गए, पर इस बात से ज़्यादा उन्होंने अपने अभिनय, लेखनी से सबंधित लिखने–पढने, सिखने पर ध्यान दिया, और अपने आस–पास के लोग, उनका चरित्र, ऐसी हर छोटी–बड़ी चीजों का अवलोकन करते रहे, उस बीच उनका कहना है कि कुछ ऐसे लोगों से मेरा रिश्ता बनते चला गया कि मेरे लिए वो भगवान साबित होते चले गए, जितना हो सके निःस्वार्थ भाव से मुझे मदद करते रहे, नहीं तो शायद वो ये लिख नहीं पाते, वो अपने पहले मित्र के बारे में अपने दादा जी के बारे में बताते हैं, उसमे से दूसरा उनका मित्र बना ”मोतीलाल” जिसने उनको ये एहसास दिलाया की इंसानियत क्या होती है, और फिर वो इस दुनिया को छोड़कर चला गया और तीसरा नाम बिरजू, जिनकी वजह से वो लगातार आगे बढ़े। २०१२ में यात्रा शुरू हुई थी और २०१८ में उनको अहमदाबाद बुलाया गया, वहाँ के एक फिल्म निर्माता को उनकी एक लघु फिल्म की कहानी पसंद आई, और फिर वो उस फिल्म में बतौर लेखक के साथ–साथ, बतौर अभिनेता भी काम किए, और उसके कुछ ही दिन बाद वाराणसी में उनके एक मित्र को उनकी एक और लघु फिल्म की कहानी पसंद आई वो एक छोटे से फिल्म प्रोडक्शन के निर्माता और निर्देशक हैं, और फिर उन्होंने आलोक को बतौर अभिनेता लेकर काम किया, बल्कि वो खुद भी आलोक के साथ बतौर अभिनेता और निर्देशक काम किए। यह आलोक कुमार की दूसरी किताब है इससे पहले “मैं और मेरी सिमरन” प्रकाशित हो चुकी है।

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