Description
“वो बात कहाँ से लाऊँ मैं” कोई प्रख्यात कवि तो हूँ नहीं, बस एक अदना-सा मध्यवर्गीय इंसान, जो शिक्षा से एक अभियंता है, उसका एक छोटा परिवार है, चौबीस वर्षों तक ख़ूब मन लगाकर नौकरी भी किया है। उम्र अभी बिस्तर पकड़ने की नहीं है, अभी है ५० साल का पट्ठा जवान। शरीर से जितना शख़्त पर दिल से उतना ही कोमल है। पराए के दुःख से दुःखी होने वाला चाहे वो पशु -पक्षी या पेड़ -पौधे ही क्यों ना हो। चिर काल से दिल में एक लालसा लगी थी कि कुछ अलग करूँ, कुछ अच्छा करूँ, कुछ निःस्वार्थ भावना से अपने देश के लिए, नवजवान पीढ़ियों के लिए, किसानों और जवानों की दशा से देश के शीर्ष पर बैठे आकाओं को बताऊँ। आज की शिक्षा पद्धति कैसी है ये आपको भी मालूम है, एक तरह का व्यवसाय बन गया है, एक लगाओ और जीवन भर स्कूल से दूहते रहो। शाम ढले अपनी माँ-बहने बाज़ार नहीं निकल सकती है, इतनी दरिंदगी है। पढ़ा -लिखा नवजवान अब सट्टा लगाता फिरता है, पकौड़े की दूकान करता है फिर भी पेट नहीं चल पाता। बीते ३ वर्षों में ख़ुद भी देखा है कि अगर आप नौकरी छोड़कर कुछ अलग करने की ठानते हैं तो समाज के साथ -साथ अपना परिवार भी आपको निट्ठल्ला ही समझते हैं। आप समाज के लिए दया के पार बन जाते हैं और यहीं से शुरू होती है एक अनवरत साथ -साथ चलने वाली टूटन की कहानी। हर बात में, हर मोड़ पर आप तौले जाते हैं, आपकी हर किसी से तुलना की जाती है। एक वो है…कितना कमाता है…उसके बच्चे कितना शौख-मौज से रहते हैं…हर साल घूमने जाते हैं पहाड़ियों में …झीलों के शहर में…तीन चार मकान भी कर लिए हैं और आप…? इस टीस के साथ कवि जो कुछ महीने अंतर्यात्रा किया है, सुलगा है, पिघला है, टूटा है, गिरा है…और फिर अंत में उठ खड़ा हुआ है, इसी भावना को कुछ छंदों में पिरोकर आप सबके सामने परोसा है -“वो बात कहाँ से लाऊँ मैं” एक टीस। शायद पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि एक -एक पात्र जो इस कविता संग्रह में है, कहीं आप ख़ुद तो नहीं।
About The Author
रत्नगर्भा भारतदेश के श्रमशील राज्य बिहार की धरती के अंतर्गत शेखपुरा ज़िला में पड़ने वाला एक छोटा सा शहर बरबीघा (नरसिंहपुर) के एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्मा कुमार “शशि” विशुद्ध रूप से एक यांत्रिक अभियंता हैं। इनके पिताजी पेशे से शिक्षक थे और माताजी एक कुशल गृहिणी। समाज और परिवार की इच्छा के चलते इन्होंने इंजिनीयरिंग की पढ़ाई पूरी की और २४ वर्षों तक नौकरी भी की पर इनके अंतस्थल में दबा कवि हृदय और दमन सह ना सका। वर्तमान देश की राजनीतिक हलचल, किसानों की दुर्दशा, सैनिकों का मानमर्दन, युवाओं का चिंतनीय भविष्य, वर्तमान शिक्षा पद्धति, नारी का चीर-हरण, वृधों का वृधआश्रम गमन, इन सारी परिस्थितियों से कुंभलाकर इन्होंने अपनी दिल की व्यथा को अपनी नौनिहाल कविता के माध्यम से आप सबों के समक्ष परोसना चाहा है।
Pankaj Dviwedi –
बेहतरीन कृति, समाज की दशा पर कवि ने बहुत सटीक कटाक्ष किया है, हर रचना उत्कृष्ट है। दशा में दिशा दिखाने का प्रयास किया है, हर रचना में कवि की टीस अनुभव होती है, मै चाहूंगा की अधिक से अधिक लोग यह दोनों संस्करण पढ़े।
Pankaj Dviwedi –
बेहतरीन काव्य संग्रह, शीर्षक के अनुसार कवि की टीस रचनाओं में जीवंत हो उठती है।
बहुत ही उम्दा प्रयास, आप इसे अपने आप से जोड़ पाएंगे, कहीं ना कहीं मै भी खुद से जोड़ पाता हूं इन कविताओं में, बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं,
यह दोनों संग्रह जरूर पढ़े और अपने मित्रों को प्रेरित करें
धन्यवाद