publish@evincepub.com   +91-9171810321
Previous
Previous Product Image

YOU CAN BAKE – TURN YOUR PASSION INTO A PROFITABLE HOME BAKERY BUSINESS

299.00
Next

The Magical Life

199.00
Next Product Image

VEDIC JEEVAN PADDHATI

779.00

by: DR. R. D. PRASAD (RAM DARASH PRASAD)

ISBN: 9789354464737

PRICE: 779

Category: EDUCATION / General

Delivery Time: 7-9 Days

Description

About the book

‘‘वैदिक जीवन पद्धति’’ के मूल आधार वेद हैं। प्राचीन काल में लोग शत-प्रतिशत वैदिक नियमों का पालन करते परन्तु समय के साथ अर्थ का अनर्थ होता रहा। पुराणी, जैरी, किरानी, कुरानी जैसे वेद विरूद्ध मत-मतान्तर प्रचलित हुए। महाभारत काल के उपरान्त सर्वथा वेद मार्ग की अवहेलना होने लगी। वैदिक जीवन के मूल तत्व ज्ञान, कर्म व उपासना है। मानव जीवन एक सुअवसर है जो बड़े भाग्य से मिलता है। अतः इसे निरर्थक गँवाना नहीं चाहिए। इस जन्म में शुभ कार्यो के आधार के लिए ही वैदिक गृहसूत्रों में चार वर्णाश्रम तथा सोलह संस्कार बनाये गये हैं। ब्रह्मचर्याश्रम में वीर्य संरक्षण एवं संयमित जीवन शैली द्वारा बल-बुद्धि का विकास करना होता है जिसके लिए आचार्य- ब्रह्मचारी को मेखलादि देकर संयमित जीवन का व्रत दिलाता है। वृद्धि, यौवन, सम्पूर्णता के विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न संस्कारों द्वारा सुनी-गुनी-चूनि-धूनी के क्रम में विकसित करने का लक्ष्य है। पचीसवें वर्ष में विवाह करके सुसंन्तान की उत्पत्ति, पंचमहायज्ञ, पर्वोत्सव द्वारा आनन्द के सुख भोगने होते हैं। पचास वर्ष के उपरान्त वानप्रस्थी का मुख्य कार्य है उपासना, जिसके लिए निष्ठापूर्वक योगाभ्यास की आवश्यकता है। पचहत्तर वर्ष के उपरान्त वैदिक सन्यासी सर्वथा भोग-विलास से परे प्रभु मिलन के पथ का पथिक होता है। सन्यास का अर्थ ही है स$न्यास अर्थात् पूर्ण परित्याग करने वाला व्यक्ति। वह पूर्ण भिज्ञ होता है कि संसार एक नाटक स्वरूप है, जिसके तीन खिलाड़ी परमात्मा, जीवात्मा तथा प्रकृति है। पदार्थ (प्रकृति) अविनाशी है। परन्तु निरन्तर अपना स्वरूप बदलता रहता है। जीवात्मा भी अजर-अमर है। परन्तु पुराने वस्त्र की भांति शरीर त्याग कर नया शरीर ग्रहण करता है। जबकि सृष्टिकर्ता परमेश्वर अनादि, अनन्त व अजन्मा है। अन्तिम संस्कार, अन्त्येष्टि इस शरीर का समाज द्वारा किया जाने वाला कर्म है जिसमें भस्मसात मृत शरीर को लोग ठेले-पत्थर जैसे छोड़कर चले जाते हैं। उस समय मात्र धर्म ही साथ होता है। अतः धर्म की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि रक्षक की रक्षा धर्म ही करता है। इस प्रकार आशा है कि यह पुस्तक धर्म प्रेमियों के लिये लाभप्रद सिद्ध होगी।

 

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping
Call Now Button