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TOWARDS A BALANCED LIFE

145.00

By: Shailbala Singh

ISBN: 9789354467196

Page: 70

Price: 145

Category: Fiction / Family Life

Delivery Time: 7-9 Days

Description

About the book

ये कहानी है अशोक कुमार और गायत्री देवी के परिवार की। अशोक कुमार एक रिटायर्ड इंजीनियर हैं जो समाज में प्रचलित बुराइयों से खुद को दूर रखते हैं। जात पात भेदभाव व दहेज प्रथा के सख्त विरोधी हैं। सदैव परिवार को एक रखने का प्रयास करते हैं।नई और अच्छी बातों को स्वीकार भी कर लेते हैं। गायत्री देवी भी संस्कारयुक्त महिला हैं और घर की अन्य स्त्रियों को भी अनुशासन में रखना जानती हैं। लोगों के चुनाव में वे अच्छे संस्कारों को पहली प्राथमिकता देती हैं। उनकी बेटी प्रेरणा नई पीढ़ी की लड़की है जिसे ज्यादा अनुशासन नहीं भाता। कभी कभी मां से अनबन हो जाती है लेकिन वह एक विचारवान लड़की है। अशोक कुमार के दोनों बेटे विपुल और विशाल अपनी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छी तरह समझते हैं और निभा रहे हैं। बड़ी बहू तान्या अपने घर को अच्छी तरह संभाल रही है। विपुल और तान्या के दो बच्चे हैं। और फिर विशाल को एक अनाथ लड़की स्नेहा से प्यार हो जाता है और वे शादी करने का निर्णय लेते हैं। अशोक कुमार इस विवाह को अपनी स्वीकृति दे देते हैं। गायत्री देवी को यूं तो कोई ऐतराज नहीं है किंतु उनके अनुसार संस्कार तो माता पिता से ही मिलते हैं और स्नेहा तो अनाथ है। इसी बात के चलते वे स्नेहा को अपनी बहू स्वीकार नहीं कर पा रही थी। उधर अशोक कुमार भी प्रसन्न नहीं थे। कुछ हद तक वे भी अपनी पत्नी से सहमत थे। सास ससुर की बेरुखी से स्नेहा पर तो मानो वज्रपात हो गया था तब प्रेरणा ने स्थिति को संभाला और स्नेहा को उसने आंखों ही आंखों में साथ निभाने का आश्वासन दिया। स्नेहा ने भी प्रण कर लिया कि वो अपने प्रेम और सेवा सास ससुर का दिल जीतकर ही रहेगी और वो दिलोजान से उनकी सेवा में लग गई। प्रेरणा के साथ और अपने आत्मविश्वास से अंततः उसने सास ससुर का दिल जीत लिया। उधर प्रेरणा भी अपने बचपन के दोस्त शशांक से प्रेमविवाह करके लंदन चली गई और वहीं बस गई। अब तक सब कुछ अच्छा चल रहा था और फिर स्नेहा, खुशी की मां बन गई। नन्ही सी जान की जिम्मेदारियों के साथ सबकी अपेक्षाओं को पूरा करना स्नेहा पर भारी पड़ने लगा। कुछ भी तो ऐसा नहीं था जिसे वो नजरंदाज कर पाती, प्रेरणा का साथ भी कहां था। वो तनाव में रहने लगी। इस बीच एक बार प्रेरणा भारत आई थी और उसने स्नेहा के तनाव को न सिर्फ महसूस किया बल्कि उसे दूर करने का प्रयास भी किया था परंतु अपनी जिम्मेदारियों के चलते वो ज्यादा समय रुक न सकी और वापस चली गई। और इधर अपनी बढ़ती हुई जिम्मेदारियों से परेशान स्नेहा ने आखिर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया। पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। जो कभी सपने में भी न सोचा था वह हो चुका था। इसका सबसे अधिक प्रभाव बिन मां की बच्ची खुशी और विधुर विशाल पर पड़ रहा था। बड़ी बहू तान्या ने स्थिति को संभालने की कोशिश की लेकिन अफसोस, उसने स्वयं को भी स्नेहा की जगह ला कर खड़ा कर दिया। इसी बीच प्रेरणा को PhD मिल जाती है जिसके लिए उसका भारत आना होता है। यहां आकर उसे इतिहास स्वयं को दोहराता हुआ दिखाई देता है। वो मन ही मन परमपिता से प्रार्थना करती है और अगले ही दिन उसकी मुलाकात अपनी बचपन की विधवा सहेली विशाखा से होती है जो बाद में विशाल की पत्नी और खुशी की मां बनती है और परिवार की कायापलट कर देती है। कैसे? यही इस कहानी का सार है

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