Description
ABOUT THE BOOK
साहित्य की विधा और विधान कैसा होना चाहिए। यह मैनें एक दोहे में कहने का प्रयास किया है, देखिए-
सफल तभी साहित्य है, सफल तभी हर छंद ।
सहज सरल हो लिख सकें, मन के सारे द्वंद ।।
मेरे लिये ‘सजल’ इन मानकों पर शत प्रतिशत खरी उतरती है। दुष्यंत कुमार के गजलों से प्रारंभ हुई यह सहज-काव्य यात्रा ‘सजल’ तक पहुंचते-पहुंचते हिंदी का सर्वाधिक सहज, सरल और सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम बनी है।
मेरी पहली सजल संग्रह ‘पुष्पक’ आपके हाथ में है। यह पुस्तक दो खण्डों में है।
पहले खण्ड में सजल के मानकों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। आज सजल गीतिकाव्य की मानक विधा है। सजल अपने स्वरुप, शिल्प और कहन के कारण लोकप्रिय है और इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। रचनाकारों के मध्य इसके विधान पर भ्रम है। यह खण्ड एक छोटा सा प्रयास है कि मानक सजलों के सृजन में सहायक हो सके।
दूसरे खण्ड में 101 सजलें हैं। इनमें विभिन्न विषयगत और भाषायी प्रयोग हैं। नवीन बिंबों और प्रतीकों के प्रयोग हैं। एक आम सुधि पाठक के तौर पर ये सजलें आपके मन को छुएंगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
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