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Quotation Anthology

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Mankahi

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Prarabdh Aur Prem

299.00

by Ranjana Prakash

ISBN: 9789389125276

PRICE: 299/-

Pages: 275

Category: Fiction / General

Delivery Time: 7-9 Days

 

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Description

ईश्वर की महान अनुकम्पा से अंततः मेरा ये प्रथम उपन्यास “प्रारब्ध और प्रेम” आज संपूर्ण हुआ। लेखनयात्रा का प्रारंभ तो कविताओं से हुआ था फिर धीरे-धीरे कहानियों का सृजन न जाने कब और कैसे हुआ कह नहीं सकती। झूठ नहीं कह सकती सच ही कहूंगी कोई भी रचना मात्रा कल्पना नहीं होती। कहीं न कहीं यर्थाथ से ही उनका जन्म होता है। मुझे सर्वत्र अपने लेखन के लिए पात्र और परिस्थितियां दृष्टिगत होती रहती है। जिन पर कल्पना के सतरंगी रंगों का मेल हो जाता है और निर्मित हो जाता है एक नया इंद्रधनुष। जो नितांत मेरा है, नितान्त निजि है अक्सर सोचती थी कि कभी किसी विशाल फ़लक पर शब्दों और भावों की विशाल पेंटिंग सा कुछ लिखा जाये। परन्तु वस्तुतः ये हो सकेगा ये नहीं सोचा था। परंतु जब ईश्वर संयोग लाता है तो सब संभव हो जाता है कुछ पात्र कल्पना में ऐसे आकार पाने लगे कि पन्नों पर उतारना आवश्यक हो गया। मेरे चहुँ ओर किरदारों की भीड़ बढ़ने लगी, शोर बढ़ने लगा जैसे सभी कहते लिखो, लिखो और चल पड़ी कथा यात्रा। सरसराती सुरभित पवन के मस्त झोंकों सी रिया तो कभी धीर गंभीर गंगा जमुना सी तरल और पवित्र अपर्णा मेरे सामने आ खड़ी होती, वहीं अकस्मात् मिश्री की डली सी और नील गगन सी, स्फटिक सी विशालाक्षी भावना सरहाने आ विराज जाती। तीनों जैसे मेरी हमजोली ही बनती जा रही थी। कुछ लोग मेरी अवस्था को सुनकर मुझे विक्षिप्त भी कह सकते हैं। जो कहना है कहे मुझे कोई परवाह नहीं……… परंतु सही सत्य है। एक उमस भरी धुंधली संध्या में अपर्णा ने मेरा हाथ थाम कर कलम मेरी उंगलियों में पकड़ाते हुए कहा लिखो रंजना अब भी न लिखा तो कब लिखोगी। और कलम चल पड़ी ठीक किसी तुलिका की तरह। आकृतियां उभरी, रंग बिखरे, स्वप्न स्मंदित हुए और मानस के विस्तृत केवास पर “प्रारब्ध और प्रेम” आकार पाता गया।

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