Description
“अपना मानकर जिन्हें लोग उनके लिए कुछ भी करने को तैयार होते है, उसमें जिंदगी की सचाई क्या है केवल स्वार्थ ही स्वार्थ। रिश्ता केवल इसी के आधार पर टिका हुआ होता है। स्वार्थ नहीं तो रिश्ता भी केवल नाम मात्र का ही रह जाता है। ऐसे में स्वयं को अकेला ही समझना मजबूरन सोच बन जाती है।
अगर ऐसा न होता, तो सबको दिल से यों त्याग कर पाना इंसान के वश की बात न थी।”
About The Author
डिग्री के मामले में लेखक श्याम यादव मैंट्रिक की परीक्षा फर्स्ट डिवीज़न से पास की। आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश पूरी न हो पाई। परन्तु पढाई में अव्वल होने के कारण खासकर लेखन में रूचि शुरू से ही रही थी। लिखने का शौक और परिस्थिति की मार ने इन्हें लेखक बना दिया। इस दिशा में जब इन्होनें कोशिश की तो सफलता इन्हें मिलती गई और फिर इन्होनें एक के बाद दूसरी, फिर तीसरी किताब भी लिख डाली। इनका पहला उपन्यास “यह किसी ज़िन्दगी ” और दूसरा “बेवफाई” और तीसरा “अपने किसे कहें ” ये तीनो ही किताब बेमिसाल हैं।
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