publish@evincepub.com   +91-9171810321
Previous
Previous Product Image

Time Machine and My Ten Residences

399.00
Next

The prisoners of Dreams – Never dream

98.00
Next Product Image

Mera Kona

135.00

by: Parul Sharan ‘Samvedna’

ISBN: 9789354461224

PRICE: 135

Pages: 78

Language: Hindi

Category: POETRY / Subjects & Themes / Nature

Delivery Time: 7-9 Days

   

Description

““जहाँ मेरी भावनाएँ शब्द सी हो जाती है,
वही जगह ‘मेरा कोना’ कहलाती है””

जीवन भर हम अपने कोने के लिए भटकते रहते हैं; एक छोटे से बस के सफ़र में भी खिड़की वाली सीट पकड़ लेते हैं। जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है अपना कोना- कभी अपनी ही जिंदगी से मिलने के लिए, कभी अपनी संवेदनाओं को स्वीकारने के लिए, कभी मन का कुछ कहने के लिए तो कभी मन का कुछ करने के लिए ; जो न पुस्तक के विषय में:
जीवन भर हम अपने कोने के लिए भटकते रहते हैं; एक छोटे से बस के सफ़र में भी खिड़की वाली सीट पकड़ लेते हैं। जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है अपना कोना- कभी मन का कुछ कहने के लिए तो कभी मन का कुछ करने के लिए और कभी अपनी ही जिंदगी से मिलने के लिए; जो न मिले तो हम गुम हो जाते हैं दूसरों के कोनों में- उनके हंसने में, उनके रोने में। और अगर ऐसी कोई किताब हो जो जब भी हाँथों में आये, जिंदगी से मुलाकात सी लगे- लगे कि अपनी डायरी पढ़ रहे हों, लगे कि अपना कोना मिल गया हो- वैसी ही किताब है ‘मेरा कोना’।

‘मेरा कोना’ ४९ कविताओं का संकलन है जो पाँच अर्थपूर्ण हिस्सों में बंटी है । हर हिस्सा अपने नाम के अनुसार जीवन की विभिन्न स्थितियों का त्यौहार मना रहा ।
– ‘झाँकती जिंदगी’ जीवन के हल्के- फुल्के पलों से पिरोई गयी है: जब ख़ुशी का कोई विशेष कारण नहीं होता पर मुस्कान बनी रहती है
– ‘मैं सीमित हूँ’ अभाव,अपूर्णता, संघर्ष और हार का उत्सव मना रही
-‘सोंचती कवितायेँ’ वैसी कविताओं हैं जो न ही सिर्फ सोंच सकती है बल्कि हमे सुन भी सकती हैं
-‘आपकी संवेदना’ हमारी अनेकोनेक संवेदनाओं का दर्पण है
-‘अपना कोना’ में हमारे मन के कोनों में आने वाले अंतहीन विचारों को संजो कर रखा गया है

About The Author

पारुल शरण उर्फ़ संवेदना दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक हैं एवं पुणे से इन्होने मानव संसाधन में स्नातकोत्तर किया । इन्होने HR क्षेत्र में भारत और कनाडा में ५ वर्ष कार्य किया है । मुंगेर, बिहार में जन्मी पारुल का मानना है कि हर वस्तु, वातावरण, लोग, पहर, स्थिति में जिंदगी ढूंढी जा सकती है । वर्त्तमान में ये बेंगलुरु से एक कनाडा स्थित NGO में स्वयं सेवक के रूप में सहयोग दे रही हैं । ‘मेरा कोना’ इनकी पहली पुस्तक है ।

 

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping
Call Now Button