Description
““जहाँ मेरी भावनाएँ शब्द सी हो जाती है,
वही जगह ‘मेरा कोना’ कहलाती है””
जीवन भर हम अपने कोने के लिए भटकते रहते हैं; एक छोटे से बस के सफ़र में भी खिड़की वाली सीट पकड़ लेते हैं। जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है अपना कोना- कभी अपनी ही जिंदगी से मिलने के लिए, कभी अपनी संवेदनाओं को स्वीकारने के लिए, कभी मन का कुछ कहने के लिए तो कभी मन का कुछ करने के लिए ; जो न पुस्तक के विषय में:
जीवन भर हम अपने कोने के लिए भटकते रहते हैं; एक छोटे से बस के सफ़र में भी खिड़की वाली सीट पकड़ लेते हैं। जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है अपना कोना- कभी मन का कुछ कहने के लिए तो कभी मन का कुछ करने के लिए और कभी अपनी ही जिंदगी से मिलने के लिए; जो न मिले तो हम गुम हो जाते हैं दूसरों के कोनों में- उनके हंसने में, उनके रोने में। और अगर ऐसी कोई किताब हो जो जब भी हाँथों में आये, जिंदगी से मुलाकात सी लगे- लगे कि अपनी डायरी पढ़ रहे हों, लगे कि अपना कोना मिल गया हो- वैसी ही किताब है ‘मेरा कोना’।
‘मेरा कोना’ ४९ कविताओं का संकलन है जो पाँच अर्थपूर्ण हिस्सों में बंटी है । हर हिस्सा अपने नाम के अनुसार जीवन की विभिन्न स्थितियों का त्यौहार मना रहा ।
– ‘झाँकती जिंदगी’ जीवन के हल्के- फुल्के पलों से पिरोई गयी है: जब ख़ुशी का कोई विशेष कारण नहीं होता पर मुस्कान बनी रहती है
– ‘मैं सीमित हूँ’ अभाव,अपूर्णता, संघर्ष और हार का उत्सव मना रही
-‘सोंचती कवितायेँ’ वैसी कविताओं हैं जो न ही सिर्फ सोंच सकती है बल्कि हमे सुन भी सकती हैं
-‘आपकी संवेदना’ हमारी अनेकोनेक संवेदनाओं का दर्पण है
-‘अपना कोना’ में हमारे मन के कोनों में आने वाले अंतहीन विचारों को संजो कर रखा गया है
”
About The Author
पारुल शरण उर्फ़ संवेदना दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक हैं एवं पुणे से इन्होने मानव संसाधन में स्नातकोत्तर किया । इन्होने HR क्षेत्र में भारत और कनाडा में ५ वर्ष कार्य किया है । मुंगेर, बिहार में जन्मी पारुल का मानना है कि हर वस्तु, वातावरण, लोग, पहर, स्थिति में जिंदगी ढूंढी जा सकती है । वर्त्तमान में ये बेंगलुरु से एक कनाडा स्थित NGO में स्वयं सेवक के रूप में सहयोग दे रही हैं । ‘मेरा कोना’ इनकी पहली पुस्तक है ।
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