Description
About the book
उपनिषदों में आध्यात्मिक स्थिति को सूक्ष्मातिसूक्ष्म वर्गों में विभाजित किया गया है। एक सिद्ध साधु को, जो जीवनावस्था में मुक्त हैं उन्हें जीवन्मुक्त’ कहा जाता है। जिनकी मृत्यु के ऊपर संपूर्ण रूप से कर्तृत्व आ जाता है, वे जीवन्मुक्त अवस्था से परामुक्त अवस्था को प्राप्त करते हैं। जिन्हें परामुक्त से सांसारिक माया बंधन एवं जन्ममृत्यु के चक्र से संपूर्ण मुक्ति मिलती है। इस प्रकार के बहुत ही कम परामुक्त योगी अपनी इच्छानुसार जड शरीर धारण करते हैं। उन्हें अवतारी पुरुष कहा जाता है जो ईश्वर द्वारा प्रेरित माध्यम होकर जगत के लिए स्वर्गीय आशीर्वाद वहन करते हैं। यह अवतार विश्व भौतिक अवस्था के अधीन नहीं होते हैं। इनके शरीर शुद्ध आलोक प्रतिमा की भांति दृश्यमान एवं प्रकृति के कारक प्रभाव से मुक्त होते हैं। लेकिन उनकी शारीरिक आकृति में कोई असाधारणता दिखाई नहीं देती, परंतु कभी- कभी उनके शरीर की परछाई दिखाई नहीं देती या मिट्टी पर उनके पदचिन्ह दिखाई नहीं देता। वे अपने भीतर के अंधकार एवं भौतिक बंधन से मुक्त होते हैं एवं जीवन – मृत्यु के अंतर्निहित सत्य को जानते हैं । महावतार बाबाजी महाराज इस तरह के मुक्त पुरुष हैं। स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि महाशय के शब्दों में – बाबाजी महाराज की आध्यात्मिक स्थिति मानव की सोच से बाहर है। मनुष्य की क्षुद्र दृष्टि उनके अतिन्द्रिय आध्यात्मिक सितारों को छू नहीं सकता। ऐसा है कि इस अवतार के योग ऐश्वर्य की कल्पना करना वृथा चेष्टा मात्र है क्योंकि यह कल्पनातीत है।
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About the Author
“डॉक्टर सच्चिदानन्द पाढी, ओड़िशा सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के अवसरप्राप्त अध्यक्ष और वैदिक विज्ञान के एक शोधकर्ता हैं। पिछले ३० साल से वे प्राचीन भारतीय विज्ञान के उपर अनुसंधान कर रहे हैं। डॉक्टर पाढी के पंद्रह पुस्तकें और एक सौ से अधिक विज्ञान -प्रबंध आंतर्जातीय एवं जातीय स्थर पर प्रकाशित हुआ है। भगवत गीता में, परिवेश विज्ञान तत्वों पर गवेषणा करना उनकी विशेषता है।
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