Description
About the book
जीवन यात्रा अबोध रूप से चलती रहती है। इस यात्रा में कभी उतार तो कभी चढ़ाव आते है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इस उतार चढ़ाव से अछूता नहीं रहता। मेरा जीवन भी इसका साक्षी है। षब्द ब्रह्म का उपासक होने के नाते जीवन दर्पण के षब्द मेरी उपासना का ही प्रतिफल है। जीवन दर्पण भाग-4 अंतः करण से निःसृत भाव है जो स्वांतः सुखाय लेखनी बद्ध हो गया जो आपके सम्मुख है। सहृदय सुधी पाठकों को इसका दूशण भी उसी प्रकार आह्लादित करेगा जिस प्रकार माता-पिता बच्चे के तोतली वाणी सुनकर आह्लादित होते हैं। अपनी इस रचना को माँ वीणावादिनी के चरणों में अर्पित करता हूँ और आषा ही नहीं विष्वास करता हूँ कि षब्द ब्रह्म के रूप में यह रचना सदा सदा के लिए भावाकाष में विद्यमान रहेगी।
About the author
भगवत प्रदत्त शिक्षा के प्रति जुझारू लग्न शीलता के कारण ही एक अत्यंत निर्धन परिवार में पैदा होकर भी साधना के दंड बल पर मैंने अपनी सारी शिक्षाएं प्राप्त की। मैं एक अत्यंत सरल स्वभाव सहृदय भावना और ईश्वर में विश्वास रखने वाला व्यक्ति हूं। रामचरितमानस एवं महाभारत के प्रति प्रेम पैतृक गुण है। हां सद्गुण हो या दुर्गुण मैंने अपनी जिद के स्वाभिमान को कभी नहीं बेंचा है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अंधविशवासी हूं। समाज में बढ़ते पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव को देख आंखों में आंसू छलक आते हैं जिनका जिक्र मेरी रचनाओं में पाठक सदा पाएंगे।धर्म मजहब और जाति विभेदन से सख्त नफ़रत। साहित्य साधना एवं प्रेम का पुजारी ।अंत में मेरे जीवन के स्तंभ अग्रज देव तुल्य शिवकुमार तिवारी के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूं। गुरु आशिष के बल पर चल रहे दशरथ तिवारी की तरफ से सभी का हार्दिक अभिनन्दन
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