Description
“इन्सानों की दुकान” एक ऐसी रहस्यमयी दुकान की कहानी है जहां लोग अपने गुण और अवगुण खरीद और बेच सकते हैं। संजय नामक एक कायर युवक अपनी करुणा बेचकर साहस खरीदता है, लेकिन जल्द ही पता चलता है कि हर सौदे की अपनी कीमत होती है। आम बोलचाल की हिंदी में लिखी यह कथा दार्शनिक सवालों को उठाती है – क्या हम वास्तव में अपने स्वभाव को बदल सकते हैं? क्या कोई गुण दूसरे से अधिक मूल्यवान है? इस यात्रा के माध्यम से पाठक जीवन के एक महत्वपूर्ण सबक की ओर ले जाए जाते हैं – सच्ची शक्ति संतुलन में है। छह आकर्षक अध्यायों में फैली यह पुस्तक पाठकों को अपने भीतर झांकने और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने के लिए प्रेरित करती है।
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