Description
About the book
यह किताब केवल एक हस्तलिपि नहीं है। यह किताब मेरी सोच है, मेरा सपना है, सभी लड़कियों के लिए सीख है, हौसला है, हिम्मत है, यह वह सोच है। जो हिम्मत देती है, उन बेटियों को आगे बढ़ने की जो हार चुकी हैं, अपनी जिंदगी से अपने सपनों को घर के किसी संदूक में बंद कर चुकी हैं। जबकि उन्हें तो अभी बहुत कुछ करना है । लड़कियों से, और सारी समाज की नारियों से मैं एक बात मुख्य रूप से कहना चाहती हूं। कि कुछ भी हो जाए अपना आत्मसम्मान और अपना आत्मविश्वास कभी मत खोना क्योंकि हम लड़कियों का और अपना होता ही क्या है । यह हमारी वह धरोहर है । जो कि हमारे अपनों ने हमें नहीं दी है । बल्कि ईश्वर ने दिया है , यह किताब कोई कहानी या, कोई कविता नहीं है । यह किताब तो हम नारियों की वह सच्चाई है। जिसे हम शायद जानते हुए भी बार-बार नकारते हैं । यह हकीकत है, जो एहसास दिलाती है, हमारे अस्तित्व का हम इस सच्चाई को नकार नहीं सकते। कि समाज में लड़कियों की क्या इज्जत है। या सब अच्छे से जानते हैं। जबकि ऐसा नहीं है, अभी भी समाज में कुछ ऐसे लोग हैं। जो लड़कियों को पूरा हक पूरी इज्जत और घर की लक्ष्मी मानते हैं। वह किसी ने कहा है ना, जब बारिश होती है, तो बारिश की बूंदे एक जगह पर नहीं गिरती है। बल्कि अलग-अलग जगह पर गिरती हैं। और अलग-अलग रूप में गिरती है। जैसे कहीं पर जाकर मोती हो जाती हैं, कहीं पर जाकर अमृत हो जाती हैं, कहीं पर जाकर विश बन जाती हैं, ऐसे ही हर मनुष्य को बनाया तो भगवान ने ही है। पर हर इंसान अच्छा तो नहीं हो सकता ना, ना ही हर इंसान बुरा ही होता है। कोई अच्छा होता है, कोई बहुत अच्छा होता है, कोई बुरा होता है। कोई बहुत बुरा होता है, यह तो समाज है। यहां भांति भांति के लोग हैं, इस बुक को लिखने का एक ही मकसद है। (सोच से परे होकर जो भी इंसान लड़कियों के बारे में गंदा सोचते हैं।) और बोलते हैं, बस ये सोचना और बोलना छोड़ दे, अपनी सोच बदलें, मैं यह कभी नहीं चाहूंगी कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे और ना ही किसी को बुरा लगे। बस मेरा यही मानना है, कि नारियों को अपना हक मिले । अपना सम्मान मिले, अपनी इज्जत मिले।
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About the author
मेरा नाम है। ( प्राची तिवारी ) मैं कोई लेखिका नहीं हूं। मैं एक आम लड़की हूं, आप सब में से ही एक हूं। मैंने जब यह बुक लिखी थी । मुझे नहीं पता था , कि यह बुक का रूप ले लेगी। (या फिर यह बुक है।)एक दिन यूं ही बैठे बैठे मैंने कुछ लिखा । पहले दिन एक पेज फिर 4 फिर 10 फिर पता नहीं धीरे-धीरे, करते-करते यह कब इतने सारे पन्नों में बन गई। की एक बुक के रूप में तब्दील हो गई। मैं बहुत ही खुले विचारों की लड़की हूं। मुझे हमेशा से ही कुछ अलग करने जज्बा रहा है। मैं लड़कियों को तितलियों की तरह देखना चाहती हूं । उनमें इतने रंग हो, कि उन्हें उदासी कर रंग ही, ना पता हो, जब तितलियां छोटी होती है, ना तो उन्हें पंख निकलते हैं, उन्हें बहुत दर्द होता है । बड़ी तकलीफ होती है। पर जब पंख जाते हैं, तो वह अपनी पहले की सारी तकलीफ भूल जाती है। क्योंकि वह अपने रंग बिरंगे पंखों के साथ खुले आसमान में उड़ जाती हैं। बस मैं इतना चाहती हूं, हर मां बाप से, हर पति, से हर भाई से, हर उस इंसान से, जो अपनी लड़कियों के पंख कुतर देते हैं। उन तितलियों के पंख कुतर देते हैं , जो निकलते ही है । उड़ने के लिए, उनसे यही गुजारिश है, ऐसा ना करें माना यह जिंदगी है। इस पर आपका हक है, इसे आप सब की जरूरत है, पर जरूरतों को मजबूरी का नाम ना दें। निकलने दो पंख, उड़ने दो, रंग देखने दो, खुश रहने दो, छोटी सी जिंदगी है। पूरा आसमां ना सही तो जमीन तो देखने दो। मेरी छोटी सी फैमिली है, मम्मी पापा दो भाई और मैं, सब इतने अच्छे हैं । कि मुझे लगता है, कि मैं कोई राजकुमारी हूं। मेरा परिवार मुझे बहुत प्यार करता है, बिल्कुल अमृत और मोती की तरह, अरे नहीं समझे वह बारिश की बूंदे समझे, जैसे कि मैंने बताया था ना, जब बारिश की बूंदे गिरती है । तो कहीं पर जाकर विश बनती है, कहीं पर जाकर मोती बनती है, वैसे ही मेरा परिवार है । बस हां ये है कि जैसे लोग होते हैं, वैसे मेरा परिवार नहीं है। सबके घरों में लड़कियां होती है, लेकिन कुछ लोग उनकी इज्जत करते हैं, और कुछ लोग नहीं करते। बस मेरी सब से यही गुजारिश है, उनका हक उनकी इज्जत होने दे । आखरी में, मैं ही कहना चाहूंगी, आपने तो पूरी बुक पढी ही होगी । वो कहते हैं ना, भगवत गीता का शिव पुराण का, हर एक ग्रंथ का, हर एक पुराण का, हर एक वेद का, एक मूल मंत्र होता है। वैसे मेरी भी बुक का छोटा सा मूल मंत्र है । (यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।,) मतलब तो आप सभी जानते होंगे, उन सब लोगों से एक बात कहना चाहूंगी, जो कभी लड़कियों को औरतों को इज्जत सम्मान नहीं देते। कभी आप औरत की बेइज्जती करके देखना, और कभी उसे इज्जत बख्श देना। आप खुद महसूस करेंगे, कि आपने जब उसे इज्जत दी थी, तो आपका सर गर्व से उठ गया था । जब आपने उसकी बेज्जती की थी तो आपका सर शर्मिंदगी से झुक गया होगा।
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