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देख इधर भी ज़रा ज़िन्दगी – ग़ज़ल संग्रह

240.00

by Dr. Gopal Rajgopal

ISBN: 9789390362349

PRICE: 240

Pages: 101

Language: Hindi

Category: Poetry / General

Delivery Time: 7-9 Days

   

Description

“पहले ग़ज़ल संग्रह के बाद नौ साल के लम्बे अरसे में मैं बामुश्किल इतनी ग़ज़लें लिख पाया हूँ कि जिन्हें क़िताब की शक्ल दे सकूँ.राहत इन्दौरी साहब ने कहा भी है -“हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू,सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है”.हर शायर को इस कै़फ़ियत से गुज़रना ही पड़ता है.हालांकि इस दौरान दोहों की दो(‘सभी लाइनें व्यस्त’ और ‘सबै भूमि गोपाल की’),बाल-कविताओं की एक(छोटे बच्चे गोल-मटोल) और राजस्थानी-मेवाड़ी की एक क़िताब(मोजर-मूंछ्याँ) शाया हो चुकी हैं.
मेरे लिए यह क़िताब इसलिए भी यादगार रहेगी कि इसका जन्म ऐसे वक़्त में हुआ है जब दुनिया में ‘कोरोना’ नाम की बीमारी ने कहर बरपा रखा है.चिकित्सा-जगत से ताल्लुक के चलते मुझे भी काफी मसरूफ़ रहना पड़ा है. बहरहाल साहित्य से वादा किया है,निभाना तो पड़ेगा ही.
मुझे ग़ज़लों से शुरू से ही मुहब्बत रही है.मैं ग़ज़लों का छात्र रहा हूँ और ज़ाहिर है छात्र से ही ग़लतियां होती हैं.ऐसी स्थिति में दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ मुझे प्रेरणा देती हैं – ‘अपनी सामर्थ्य और सीमाओं को जानने के बावजूद इस विधा में उतरते हुए मुझे आज भी संकोच तो है पर उतना नहीं जितना होना चाहिए.’
प्रायः ग़ज़लों के विन्यास में भाव व शिल्प को समान रूप से अहमियत दी जाती है किन्तु इन ग़ज़लों में भाव पक्ष यदि कमज़ोर है तो शिल्प उससे भी कमज़ोर है. उदयपुर के मशहूरो-मारूफ़ शायर ख़ुर्शीद नवाब साहब का दिली शुक़्रिया जिनकी पारखी नज़रों से ये गज़लें गुजरीं हैं.हालांकि कहीं-कहीं मैं उनके इस्लाह को हू-ब-हू मान नहीं पाया हूँ.इसलिए जो भी कमियाँ रही हैं वे मेरी ओर से ही हैं जिन्हें मैं ह्रदय से स्वीकार करता हूँ .
मेरी कोशिश है कि कम लिखूं लेकिन कुछ बेहतर लिखूं. कितना क़ामयाब हुआ हूँ यह कहना मुश्किल है.यह तो आप ही बेहतर बता पायेंगे.
माता-पिता की दुआएं हमेशा मेरे साथ रही हैं.हालांकि पिता श्री किशन लाल इस दुनिया में नहीं हैं.वे ‘ज़ख्म जब भी ……’के प्रकाशन के दौरान ही 3.2.2011 को मुझसे दूर जा चुके थे लेकिन आज भी सर पर उनका हाथ मैं महसूस कर सकता हूँ.
मैं शुक्र-गुज़ार हूँ मेरी हमसफ़र राजकुमारी जी,नाय़ाब नगीनों नेहा-निकिता-पर्व,अज़ीज़ दोस्तों और तमाम चाहने वालों का जिन्होंने क़िताब को इस मुक़ाम तक पहुँचाने में मेरी मदद की.”

About The Author

“जन्म: 2 जुलाई 1960 (फरारा महादेव,ज़िला राजसमन्द) भारत
पिता: स्व. श्री किशन लाल
शिक्षा: एम.बी.बी.एस.,एम.डी.(सामुदायिक चिकित्सा)
सम्प्रति: आचार्य,सामुदायिक चिकित्सा विभाग,
आर.एन.टी.मेडिकल कॉलेज,उदयपुर (राज)
पुस्तकें: ज़ख़्म जब भी दो-चार भरते हैं (ग़ज़ल-संग्रह) 2011
सभी लाइनें व्यस्त(दोहा-संग्रह) 2014
मोजर-मूंछ्याँ(राजस्थानी-मेवाड़ी व्यंग्य संग्रह )2016
छोटे बच्चे गोल-मटोल(बाल-कविता संग्रह) 2018
सबै भूमि गोपाल की(दोहा-संग्रह) 2018
देख इधर भी ज़रा ज़िन्दगी (ग़ज़ल-संग्रह) 2020
प्रकाशन: देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं,संकलनों में
ग़ज़लों,दोहों,बाल-रचनाओं,लघु-कथाओं आदि का प्रकाशन
प्रसारण: आकाशवाणी द्वारा साहित्य एवं स्वास्थ्य विषयक वार्ताएं
प्रकाश्य: गोपाल की कुण्डलिया(कुण्डलिया संग्रह)
शोले के दोहे (सचित्र दोहा संग्रह)
सम्मान: कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित
संपर्क: 225-सरदारपुरा,पेट्रोल पम्प के पीछे ,उदयपुर -313001 भारत
दूरभाष: 0294-2413085
मो. +91-9001295523,9414342523
ई.मेल : grajgoparv@gmail.com

 

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