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Author Santosh Mohanty

सन्तोष मोहन्तीदीप

जन्मस्थानमहू (.प्र.),

मातृभाषाउड़िया ( राष्ट्र भाषा हिंदी से विशेष लगाव )

शैक्षणिक योग्यताएम.एस.सी.(वनस्पति शास्त्र), एम..(अर्थशास्त्र), एल.एल.बी., सी..आई.आई.बी.

व्यवसायमुख्य प्रबंधक (बैंक ऑफ़ बडौदा से सेवा निवृत्ति)

बैंक में सेवा की अवधि में विविध पुरस्कारों से सम्मानित –Baroda Financial Rewards for Business Leader

बैंक से संबधित अन्य गौरवमयी पुरस्कार।

साहित्यिक कृतित्व विवरण

कविता, कहानी, लघुकथा, लेख तथा उपन्यास में सृजनशीलता। समसामयिक रचनाएं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित, विशेष उल्लेख, वीणा तथा समरलोक पत्रिका में कहानी का प्रकाशन।

ऐतिहासिक उपन्यासबाजबहादुररूपमती (अमर प्रणय गाथा) का सम्पादन, प्रकाशन तथा लोकार्पण एवं प्रस्तुतीकरण। (यह उपन्यास लेखक के ससुर स्व. लक्ष्मी दत्त शर्मा के मृत्यु उपरान्त संपादित, प्रकाशित तथा लोकार्पित की गयी।)

खंडकाव्य– “एकलव्यप्रकाशित तथा लोकार्पित.

लेखक द्वारा रचित कहानी संग्रहसेतु बंधउनकी पहली कहानी संग्रह है।

प्रकाशन की ओर अग्रसर काव्य संग्रह:

धुंध पिघलने लगा है

बाल काव्य – “फुलवारी

अन्य गतिविधियांसंस्थापक अध्यक्षरोटरी क्लब महू कैंट, संस्थापक अध्यक्षवृद्धाश्रमकृपालय, महू, सदस्यहिंदी परिवार, इंदौर. सदस्य.प्र. लेखक संघ, महू. संयुक्त सचिवनेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड, .प्र. राज्य शाखा इंदौर।

साहित्यिक सम्मान– अर्चना साहित्य संस्था महू द्वारा: अर्चना साहित्य सम्मानमंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा रचना शतक वीर सम्मान।

एकलव्य – अमर खंडकाव्य

वैसे तो महाभारत में कई ऐसे पात्र हैं जिनके चरित्र में प्रभावित करने की क्षमता है. इन पात्रों ने अपने क्षेत्र विशेष में स्वयं की श्रेष्ठता स्थापित की है. कई पात्र मुख्य और महत्वपूर्ण रहे तथा कुछ ऐसे भी पात्र थे जिनका उल्लेख संक्षिप्तता लिए हुए है. उन्ही में से एक पात्र है एकलव्य.

महाभारत में एकलव्य का उल्लेख विस्तृत न होकर अति सिमटा हुआ सा है. पर इतना निश्चित है कि एकलव्य का चरित्र अत्यंत ही द्रढ़ता को लिए हुए प्रस्तुत होता है. पुरातन काल में जब कि सम्पूर्ण भारत-वर्ष ऐश्वर्य एवं वैभव के शीर्ष पर था तथा विज्ञान भी उन्नत अवस्था में अपनी उपस्थिति दे चुका था, एक अति महान उच्च संस्कृति देश में विद्यमान थी तब जाति तथा वर्ण प्रथा का इतना महत्ता के साथ स्वीकारित होना ह्रदय को ठेस पहुंचाता है. इसी जाति तथा वर्ण व्यवस्था का एक शोषित पात्र रहा एकलव्य, जिसे गुरु द्रोणाचार्य द्वारा इसलिए धनुर्विद्या का ज्ञान एवं कौशल नहीं सिखाया गया क्योंकि वह राजकुल से सम्बंधित नहीं था. वह निम्न कुल से सम्बंधित होकर वन में निवास करने वाला एक वनवासी था जिसे वर्तमान में आदिवासी वर्ग में वर्गीकृत किया जा सकता है. एकलव्य के किशोर मन में यह बात इतनी गहराई तक चुभ गई कि उसने स्वयं को श्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में स्थापित करने का दृढ संकल्प कर लिया. पूर्ण आदर और मर्यादा के साथ एकलव्य ने द्रोणाचार्य को ह्रदय से गुरु मान उनकी प्रतिमा को वन में स्थापित कर उसके सम्मुख निरंतर धनुर्विद्या का अभ्यास किया. ह्रदय से माने हुए गुरु तो वहाँ सशरीर उपस्थित नहीं थे,परन्तु गुरु प्रतिमा को गुरु का रूप मानकर पूर्ण एकाग्रता के साथ एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास निरंतर करता रहा. एकलव्य को लगन ऐसी लगी कि उसने अपनी कठोर परिश्रम और साधना से एक श्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में स्वयं को सिद्ध कर ही दिया. अपनी इस द्रढ़ इच्छा शक्ति, अटूट एकाग्रता, जीवटता और लक्ष्य को प्राप्त करने के जूनून के कारण एकलव्य सदैव युवाओं के लिए प्रेरणास्पद बना रहेगा. 

सेतु-बंध: कहानी संग्रह

जीवन पूर्णतः उतार- चढ़ाव से परिपूर्ण है। कई तरह की घटनाएँ हमारे समक्ष घटती है जिनका हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यही घटनाएँ हमारे अनुभव का आधार होती हैं तथा न जाने कितनी बार यथार्थ से हमे परिचय करा जाती है। अपने आस-पास इन्ही बिखरी हुई घटनाओं ने मुझे प्रेरित किया कि मैं उन्हें कलमबध्द करूँ और कहानियों का स्वरूप प्रदान कर साहित्य सृजन में स्वयं की भागीदारी सुनिश्चित करूँ। कहानी संग्रह “सेतु-बंध” एक ऐसा ही प्रयास है जिसमे मेरे जीवन के आस-पास अथवा मेरे स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं को आधार बना ग्यारह कहानियों को समावेश किया गया है। ये ग्यारह कहानियाँ अलग-अलग परिस्थितियों तथा परिवेश को परिलक्षित करती है। कहीं पर इसमें स्थापित व्यवस्था के प्रति सीधा सच्चा प्रहार है तो कहीं मानवीय संबंधों का रिश्तों और संवेदनाओं को लेकर ताना-बाना बुना गया है। प्रत्येक कहानी का आधार कहीं न कहीं सत्यता पर आधारित है इसमें किसी भी प्रकार के संशय की गुंजाईश नहीं है। बाद में कल्पनाओं को गढ़ा अवश्य गया पर कथानक यथार्थ से जुड़ा हुआ है। कहानी संग्रह का शीर्षक “सेतु-बंध” मेरी एक ऐसी कहानी है जिसे मैंने अपने महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्ति के दौरान अपने मस्तिष्क के धरातल पर अंकुरित किया था पर उसे कहानी का आकार नहीं दे पाया था। यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है जो अब जाकर पूर्ण हो पायी है। इसी कहानी के शीर्षक को कहानी संग्रह का भी नाम प्रदान किया गया है। – सन्तोष मोहन्ती “दीप”

 

धुंध पिघलने लगा है: काव्य संग्रह

काव्य संग्रह “धुंध पिघलने लगा है” विभिन्न परिस्थितियों पर लिखी कविता का प्रस्तुतिकरण है । इस काव्य संग्रह में मानवीय संबंधों का उल्लेख है तो कहीं प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण है । कहीं देश में व्याप्त अव्यवस्था पर प्रहार है तो कहीं प्रेम की सहज अभिव्यक्ति भी है । कही अतीत में पसरी यादों की वेदना है तो कहीं भविष्य के प्रति आशा और विश्वास का समागम है । जब जैसी भी परिस्थिति का आगमन हुआ, कविता का भी सृजन हुआ । भावनाओं को कविता में ढाल दिया गया है और उनके संग्रह की परिणति ही यह काव्य संग्रह है ।

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