Description
गीता में 700 श्लोकों के अन्तर्गत ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग जैसे अनेक विषयों पर श्रीकृष्ण ने अपने मौलिक विचार प्रस्तुत कर के एक साधारण मानव के लिए सार्थक जीवन जीने का मार्ग बतलाया है। अनेक बार पाठक को गीता की संरचना जटिल प्रतीत होती है और कतिपय विषय परस्पर गुथे हुए से लगते हैं । इसका मुख्य कारण वर्णित विषयों का क्रमबद्ध न होना है। जब-जब अर्जुन ने जो प्रश्न पूछा, तब-तब श्रीकृष्ण ने उस विषय का प्रतिपादन किया। इस प्रकार, भिन्न-भिन्न असम्बद्ध विषयों का गैर-क्रमवार रूप में विवेचन पाठकों के विचारों के तारतम्य को तोड़ता सा लगता है। ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग आदि गंभीर विषय हैं, जिनको समझने के लिए प्रज्ञा को स्थिर करना पड़ता है। बिना-क्रम के विभिन्न अध्यायों में वर्णित ये विचार साधारण अध्येता की विषय-ग्रहण विषयक जटिलता को कुछ अधिक बढा देते हैं ।इस प्रकार की जटिलता को सुलझाने का एक ही उपाय है कि गीता में वर्णित सभी विषयों को क्रम के साथ व्यवस्थित रूप से संकलित कर पुन: व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया जाये। प्रस्तुत पुस्तक में एक ही विषय को बताने वाले सभी श्लोकों को एक साथ एक अध्याय में रखा है तथा अन्य विषयों को वर्णित करने वाले श्लोकों को अलग-अलग अध्यायों में रखा है। ऐसा करने से पाठक को एक व्यवस्थित क्रम से गीता में चर्चित सभी विषयों के बारे में जानकारी मिलती है।
About the author
इस पुस्तक के लेखक-संकलनकर्त्ता श्री तुषार मुख़र्जी शैक्षणिक दृष्टि से मूलतः इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं, परन्तु वेद-उपनिषदों के अध्ययन के प्रति उनकी कॉलेज के दिनों से ही रूचि रही है जो उनके परमाणु ऊर्जा विभाग, मुंबई में वैज्ञानिक अधिकारी के रूप के कार्यकाल में भी जारी रही। वर्ष-2011 में सरकारी नौकरी छोड़ कर कुछ वर्ष विदेशों में कार्य किया। वर्ष-2016 में स्वदेश वापिस आकर नवी मुंबई में निवास करते हुए टेक्निकल कंसल्टेंट के रूप में कार्यरत होने के साथ वेद-उपनिषद्-दर्शन ग्रन्थ-श्रीमद्भगवद्गीता आदि ग्रंथों के महत्वपूर्ण अंशों के अनुवाद का कार्य भी करते रहे।
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