Description
About the book
My first book ‘Parichay’ was received with due serenity, it deserved. Reviews, compliments and goodwill messages, all. Yet I recall renowned poet Shri Baldev Vanshi ji commenting on its title ‘Parichay’. “Accident”, he said, “How could a poem book be named ‘Parichay’’’. But that was to be so, it was my introduction, my ‘parichay’, each word of it coming to the tip of the pen straight from my being. Today, I contemplate to give a name to this present work. ‘Parichay-2’ !… but it’s not me, it’s something else which I too crave to understand. ‘My little philosophies’?… But a philosophy must have some universality, even if in disagreement. The prose part in it are my views and I have no moral right to impose them on my reader.
About the author
मैं, श्याम सुन्दर गुप्ता, न कवि ही होने का दावा करता हूँ न लेखक | कुछ शौक हैं, उन्हीं को निभाते कुछ भाव उभरते हैं तो कागज पर उतार लेता हूँ| कभी खाली समय में पुनः पढ़ लेता हूँ और कभी कभी अचरज भी करता हूँ कि ये जो लिखा है मेरे ही भाव थे या हैं| इसे आपसे साझा कर रहा हूँ, इस आशा से कि इन कृतियों पर टिप्पणी दे कर कृतार्थ करेंगे|
परिचय के नाम पर – मेरा जन्म 19 जून 1955 को पटियाला (पंजाब) में हुआ| स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य में) तक की शिक्षा चंडीगढ़ में हुई| फिर कुछ भारती विद्या भवन दिल्ली में| लगभग 40 साल भारत सरकार की सेवा के पश्चात् निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुआ| यह मेरी दूसरी प्रकाशित पुस्तक है| पहली पुस्तक ‘परिचय’ मेरी हिंदी तथा अंग्रेजी में लिखी कविताओं का संग्रह है, जो 2006 में प्रकाशित हुई थी|
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