Description
मैं और मेरी सिमरन, ”मैं” यानि मैं नहीं जो इस कहानी में जीवित है, और अपने साथ–साथ अपने दिल में अपनी सिमरन को लिए। लड़के की नज़र बहुत चतुर होती है वो जब भी बाहर होता है, तो उसकी नज़रें बहुत बेचैन होती है किसी खूबसूरती की तलाश में, वैसे उसके ज़िंदगी में लड़कियों की कमी नहीं होती है, पर शायद वो है थोड़ा कमीना किस्म का। लेकिन एक दिन उसको मिलती है उसकी ज़िंदगी वो खूबसूरती, जो उसके सारे अरमानों को खुद तक लाकर सीमित कर लेती है, उससे मिलने के बाद उसकी नज़रों को बहुत राहत मिल जाती है। प्यार हो जाता है उसको, उस खूबसूरती से जिसका नाम ”सिमरन” है। २०१३ के अक्टूबर में दोनों मिलते हैं, और उन दोनों को साथ में वक़्त बिताने का भरपूर मौका मिलता है जिसमे उन दोनों को प्यार हो जाता है, बात शादी की भी होती है, दुबारा मिलना भी चाहते हैं, पर अगले दिन जैसे ही वो दोनों एक दुसरे के सामने होते हैं, लड़के को अचानक ही नींद आ जाती है, और इतनी गहरी नींद की वो सीधा २०५० में जगता है। सिमरन का कुछ पता नहीं, कहाँ है, क्या है, जिंदा है भी या नहीं, लड़का खुद को आईने के सामने खड़ा नहीं कर पता है, क्योंकि वो खुद को पहचान नहीं पाता है, शायद जवानी में सोकर सीधा बुढ़ापा में जगा है । खैर…जागने के बाद भुला तो कुछ भी नहीं रहता है, पर सिमरन के ख्याल के अलावा उसके दिमाग में और कुछ होता भी नहीं है, फिर क्या… एक ५५ साल का बूढ़ा निकलता है अपनी प्रेमिका की तलाश में, उस तलाश में उसको खुद को भी तलाशने का मौका मिलता है, उसको अपने साथ-साथ इतिहास के पन्नों में छिपी कुछ दर्द को महसूस करना होता है, फिर भी सिमरन मिलती है या नहीं, अब ये तो वही बताएगा, इस कहानी के अन्दर उससे मिलना पड़ेगा
About The Author
आलोक कुमार, का जन्म बिहार के सासाराम शहर में हुआ, पर उनका घर सासाराम से तकरीबन १४, १५ किलोमीटर दूर डुमरिया नाम के एक छोटे से कस्बे में है, लेकिन उनके जन्म से ही उनका परिवार सासाराम और डुमरिया के बीच एक छोटा सा बाज़ार ”अमरा तालाब” पर बसे हुए थे, इसीलिए उनकी प्राथमिक शिक्षा वहीं के प्राइवेट और फिर सरकारी स्कूल से हुई, और फिर उन्होंने अपने दसवीं और बारहवीं की पढाई अपने नजदीकी शहर सासाराम से पूरा किया, उन्होंने B.A की डिग्री के लिए अपने राजधानी ”पटना” के ”नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी” में नामांकन कराया, पर वो B.A का पहला सत्र भी नहीं पूरा कर पाए । दरअसल, उन्होंने जब से होश संभाला उनको अभिनय का करने बहुत शौक था, और धीरे–धीरे उनका वो शौक बढ़ता गया, और फिर वो अपने भविष्य की कल्पना एक पेशेवर अभिनेता के तौर पर करने लगे, उस कल्पना में वो इस बात की भी कल्पना करते थे कि मैं जब अभिनय करूँगा तो अभिनय कैसे करूँगा, कहानी कैसी होगी, और फिर उनके दिमाग में अभिनय के साथ–साथ कहानियों का भी ख्याल आने लगा और फिर उस कल्पना ने उनको लिखने पर मजबूर कर दिया। एक सख्त परिवार और समाज में जन्म होने के कारण वो किसी को कुछ बताते नहीं थे, बहुत गुमसुम रहा करते थे, और उनको जब भी मौका मिलता था, वो खुद से ही बात किया करते थे, जब वो दसवीं का परीक्षा देकर उसके परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे तो उसी बीच उनको एक आदमी से मुलाकात हुई जो भोजपुरी भाषा में गीत–संगीत बनाता था, और वो आदमी उनको वाराणसी जाने को कहा और एक आदमी से मिलने को कहा। वो घर से झूट बोलकर वाराणसी गए चूँकि घर से पहली बार इतना दूर जा रहे थे तो अपने साथ एक मित्र को ले लिए उस वक़्त वही उनका करीबी मित्र था, और पैसे के आभाव में उनको उस दिन भूखे रहना पड़ा और साथ में उनके दोस्त को भी, उनके ज़िंदगी का वो पहला परीक्षा था उनके ज़िंदगी के तरफ से और उसमे कामयाब हुए। उसके बाद शुरू हुई उनकी यात्रा, वो अपनी कहानी खुद लिखने लगे और निर्देशक, निर्माता से मिलने लगे, पर वो लगातार असफल होते चले गए, पर इस बात से ज़्यादा उन्होंने अपने अभिनय, लेखनी से सबंधित लिखने–पढने, सिखने पर ध्यान दिया, और अपने आस–पास के लोग, उनका चरित्र, ऐसी हर छोटी–बड़ी चीजों का अवलोकन करते रहे, उस बीच उनका कहना है कि कुछ ऐसे लोगों से मेरा रिश्ता बनते चला गया कि मेरे लिए वो भगवान साबित होते चले गए, जितना हो सके निःस्वार्थ भाव से मुझे मदद करते रहे, नहीं तो शायद वो ये लिख नहीं पाते, वो अपने पहले मित्र के बारे में अपने दादा जी के बारे में बताते हैं, उसमे से दूसरा उनका मित्र बना ”मोतीलाल” जिसने उनको ये एहसास दिलाया की इंसानियत क्या होती है, और फिर वो इस दुनिया को छोड़कर चला गया और तीसरा नाम बिरजू, जिनकी वजह से वो लगातार आगे बढ़े। २०१२ में यात्रा शुरू हुई थी और २०१८ में उनको अहमदाबाद बुलाया गया, वहाँ के एक फिल्म निर्माता को उनकी एक लघु फिल्म की कहानी पसंद आई, और फिर वो उस फिल्म में बतौर लेखक के साथ–साथ, बतौर अभिनेता भी काम किए, और उसके कुछ ही दिन बाद वाराणसी में उनके एक मित्र को उनकी एक और लघु फिल्म की कहानी पसंद आई वो एक छोटे से फिल्म प्रोडक्शन के निर्माता और निर्देशक हैं, और फिर उन्होंने आलोक को बतौर अभिनेता लेकर काम किया, बल्कि वो खुद भी आलोक के साथ बतौर अभिनेता और निर्देशक काम किए। और अभी ये आलोक कुमार की पहली उपन्यास है।
Sonu parihar –
This is superb
Sandeep Gaur –
Your work has been very commendable,Do you keep growing further..
Swati shreya sharma –
Supppbbb alok ji… Very interesting love story.. Keep it up
Manu sahu –
It’s very good book ..maza aa gya
Rahul –
Great book guys go for it.