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Kaaragar Evam Bandi Jeevan

320.00

by: Dr. Nirankar Prasad Srivastava

ISBN: 9789354460418

PRICE: 320

Pages: 218

Language: Hindi

Category: Low / General

Delivery Time: 7-9 Days

Description

About the book

अपराधी को तीन स्तरों से गुजरना होता है: पुलिस-न्यायालय-कारगार। कारगर की उत्तपत्ति- कानून तोड़ने वालों के प्रति समाज की प्रतिक्रया के रूप में हुई है। अपराध पीड़ितों में भय और प्रतिशोध कम करने, अपराधी को दंडित करने व सुधार की भावना ‘कारागार’ में समाहित है। सम्प्रति कारागार अपने मूल उद्देश्यों से भटक गए हैं। कारागार में अनियमितताएँ, कर्मियों की लापरवाहियां, गुटबन्दी, आपसी सँघर्ष, रंगदारी, मोबाइल-धमकियां, मिलीभगत, बीमारी के बहाने अस्पताल में आराम, खराब भोजन, विचाराधीन बन्दियों के सर्बाधिक प्रतिशत, छापेमारी में आपत्तिजनक बस्तुओं की निरंतरता, हिरासती-मौतें, आत्महत्याएं, चिकित्सा की लचर व्यवस्था आदि की प्रतिक्रिया : भूख हड़ताल, कर्मियों को बंधक बनाने, हिंसात्मक वारदातों के रूप में होती है। कानूनविदों का कहना है कि good work हेतु पुलिस द्वारा छोटे-मोटे अपराधों में गिरफ्तारियों से करागरों में अधिक भीड़-भाड़ बढ़ रही है। ऐसे जाने कितने लाखों आरोपी कारागार में सड़ रहे हैं, जिनके मुकदमों की सुनवाई में वर्षों लग जातें हैं। जिंदगी सलाख़ों के पीछे बर्बाद हो जाने के बाद बेगुनाह घोषित किये जाने से क्या लाभ है? यदि विचाराधीन बन्दी दोषमुक्त पाए जाते हैं तो क्या समाज, कारागार और न्यायालय के द्वारा कारागार में बिताए गए वह बहमूल्य समय लौटा सकते हैं ?

About the author

“डॉ. निरंकार प्रसाद श्रीवास्तव(1948) ने बीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति प्रो.शरत कुमार सिंह के निर्देशन में “”चीनी उद्योग में औद्योगिक विवाद”” विषय पर पी-एच.डी(1982) किया है। क्रिमिनोलॉजी एंड पे नोलॉजी, इंडस्ट्रियल सोशियोलजी एवं पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन इनके फील्ड ऑफ स्पेशलाइजेशन रहें हैं। डी. ए. वी.पोस्टग्रेजुएट,आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) के समाजशास्त्र विभाग में 42 वर्षों तक सेवारत रहते हुए एसोशिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के बाद प्राचार्य पद पर भी आसीन रहे। कॉलेज मैनेजिंग कमेटी के सदस्य,पू. वि.वि. में समाजशास्त्र विषय के आर.डी. सी. व बोर्ड ऑफ स्टडीज के संयोजक एवं कार्य परिषद के सदस्य भी रहे। कुमायूं,आगरा, राजस्थान, गुजरात,जे.न.यू.दिल्ली,पंजाब आदि विश्वविद्यालयों में रिफ्रेशर कार्य सम्पन्न किये।
11 कॉन्फ्रेंसस व सेमिनारों में सहभागिता, 21 शोधपत्रों का प्रकाशन, 5 डिप्लोमा इन सोशल वर्क, 1 एम-फिल तथा 11पी-एच.डी. शोधों का निर्देशन किया। प्रकाशित पुस्तकों में – समाजशास्त्रीय शोध संकलन(2010), पुलिस जनाक्रोश के परिपेक्ष्य में(2011), राजनीति में भ्रषटाचार संक्रमण(2015), किन्नरों का रहस्यमयी संसार(2017), कारागर एवं बन्दी जीवन(2021) प्रमुख हैं।”

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